ना राम को देखा, ना सीता को पाया
आप ही की सुरत को, प्रभु मूरत सा मन में बसाया ।।
आंख खुली तो, माँ तुमको पाया ,रोते रोते हंसना आया
बेफ़िक्री झपकी को बस, पापा की ही गोद में पाया ।।
अधरों ने पहले माँ था पुकारा, पैरों को चलना, पापा ने सिखाया
एक छींक पर मैंने अपनी, तुमको सिरहाने जगता पाया ।।
एक गिलास दूध के पीछे, मैंने तुमको बहुत दौड़ाया
पहली साइकिल, पहली स्कूटी, याद है सब जो तुमसे पाया ।।
साड़ी पहन के मम्मी तुम्हारी, चंचल मन बड़ा इतराया
पापा ने जब साड़ी में देखा, मोती सा इक अश्रु टपकाया ।।
दुल्हन बन बस घर छोड़ा पर, मन आँगन में तुमको बसाया
आगे बढ़ना, कांटों से भिड़ना, जीवन दर्श तुम्हीं से पाया ।।
जीवन के इस नए छोर पर, चलो पलट दे किरदार हम अपने
अब बेफ़िक्र जग में फिरो तुम,और, मैं श्रवण सी तुम्हें घुमाऊं ।।