अगर जो हम शराब होते,
मधुशाला की चौखट पे सजते
गज़लों के शेरों में बसते
शाम से लेके सहर तक होते
यारी के जलसौं में मिलते
गूंगे की आवाज़ भी बनते
ग़म में रहते, खुशी में नचते
किस्सों के सरूर में बहते
ना धर्म में होते, ना जात में होते
बस, हर आदम के इश्क़ में होते
अगर जो हम शराब होते !