हर उम्र की बारिश अपनी है
कभी तो चाहत कभी मुसीबत
कभी दिलाती याद किसी की
हर बारिश की ख्वाहिश अपनी है।।
फिर चाहत थी खुद से मिलने की
लहरों पर थी कश्ती कागज़ की
मल्हार बनी चींटी कश्ती की
फिर ख्वाहिश थी भीगे तन की
साजिश थी माँ से छिपने की
वो बारिश थी मेरे बचपन की ।।
पडाव उम्र का ऐसा आया
ख़ुद से प्यारा, जब जग को पाया
देख गुलों की नाज़ुक काया
दिल का भंवरा फिर मुस्काया
मंद फुहारों के साये में
फटफटीयां पे समय बिताया
जवा उम्र की बारिश वो थी
जब टिप टिप रिसते गलियारों ने
प्यार का मीठा राग सुनाया ||
एक बुढ़ापा, एक जवानी
बीच में चालीस अलग कहानी
अब बारिश कीचड़ लगती है
दीवारों की सीलन लगती है
ट्रॅफिक जाम का Reason लगती है
कभी मोहब्बत लगने वाली
अब बेगम रूठी लगती है
ये चालीस की बारिश मुझको,
बस कॉफी संग भजियों की
एक अधूरी ख्वाहिश लगती है ||
जब साठ पार ये जीवन होगा
बोझ ना कोई सर पे होगा
पास भी मेरे कोई ना होगा
तब बारिश में यादें होंगी
यादें बचपन के आँगन की
यादें आशिक के सावन की
यादें कॉफी के प्याले की
यादें जीवन के जीने की ||
हर उम्र की बारिश अपनी है
कभी तो चाहत कभी मुसीबत
कभी दिलाती याद किसी की
हर बारिश की ख्वाहिश अपनी है ||