मौसम में, एक अलग सा खुमार है
हर गली में बजता, मनोज कुमार है
सफेद कुर्तों पर, तिरंगा नजर आया है
लगता है, 15 अगस्त लौट आया है
ख़ून में, नेताजी के नारों का उबाल है
टीवी पर दिखता, भगत बार बार है
गांधी के पुतलों को, फिर हमने धुलवाया है
लगता है 15 अगस्त लौट आया है
रंगोलीयों में, कोई अपना नज़र आया है
भारत माँ का, चेहरा जो उभर आया है
जय भारत के नारों ने, दिल में जोश जगाया है
लगता है 15 अगस्त लौट आया है
तिरंगा, फिर बिकता नज़र आया है
भूखे की, रोटी बन लहराया है
दस रुपये जोड़ी, हमने भी पाया है
लगता है 15 अगस्त लौट आया है
बँटवारे का मंज़र, फिर आंख से गुज़रा है
जिन्ना का खंजर, फिर ज़हन में उतरा है
खण्डित माँ का चेहरा, फिर याद आया है
लगता है 15 अगस्त लौट आया है
सरहदों पर हलचल, बढ़ सी गई है
रोली, मेहंदी, बिछीया सहम सी गई है
कुत्तों ने, फिर शेर को ललकारा है
लगता है 15 अगस्त लौट आया है
लाल किले को, फिर हमने चमकाया है
भूतकाल की स्मृतियों में, उसको खोया पाया है
अलमस्त हवा के झोंको ने, फिर जन गण मन गाया है
लगता है 15 अगस्त लौट आया है
तेरी-मेरी,इसकी-उसकी,अलग-अलग है सबकी बोली
प्रांत अलग है, धर्म अलग है, तेरी टोपी, मेरा तिलक है
पहचान बना भारत को अपनी, हमने त्यौहार मनाया है
लगता है 15 अगस्त लौट आया है
प्रतीक पागे