राम चरित है

राम को भगवान कह दूँ
कैसे खुद से दूर कर दूँ
विष्णु का अवतार कह दूँ
कैसे बस चमत्कार कह दूँ

राम नाम का जाप करूँ
पर खर दूषण से काम करूँ
राम को देवों में गिन के
खुद से बाहर राम करूँ

धैर्य राम है, सत्य राम है
वचनों का सौभाग्य राम है
मर्यादा के प्राण राम है
देव से पहले चरित राम है

विश्वामित्र ने व्यथा सुनाई
धर्म रक्षा की टीस बताई
कहा चलो संग वन में राम
दैत्य कुल पर लगे विराम

शब्द गुरु के पड़े कान में
राम चले फिर धर्म साधने
रघुकुल रीत सदा रही है
धर्म की रक्षा सर्वोपरि है

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
हित में सब के काम करूँ मैं
धर्म डगर को पकड़ चलूं में

राज-पाट का समय निकट था
सर पे धरना मुकुट शेष था
वचन का कांटा राह में आया
क्षुब्ध पिता ने वृतांत सुनाया

कितना प्रबल भाग्य पिता का
राम रूप में पुत्र को पाया
किंचित मन में प्रश्न ना आया
अरण्य को सौभाग्य बतलाया

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
प्रिय जनक की छड़ी बनूँ मैं
अभिमान पिता का सदा रहूं मैं

लखन सिया संग राम चले
गंगा तट पर निषाद मिले
गले लगाया बाल सखा को
पास बिठा, दिया मान सखा को

चरण धुले तब नौका चढ़े
अपनी बात पे केवट अड़े
केवट का मन जाने राम
भक्त के मन को दिया सन्मान

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
मान मित्र का सदा रखूं मैं
ना ऊंच नीच में कभी पडू मैं

सिया को हर, रावण बढ़ा
राह रोके जीर्ण, जटायु खड़ा
नहीं मेल था कोई रावण से
राम भक्त भी ना था, भयभीत मृत्यु से

सिया का संदेश दिया राम को
प्राण त्याग, चला वैकुण्ठ को
प्रबल भाग्य उस राम भक्त का
मिली मृत्यु पर हुआ राम का

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
सर कटे भले, पर झुके कभी ना
अपमान नारी का, सहूं कभी ना

मूक जीव की बलिवेदी पर
चढ़ ना सकूंगी, परिणय रथ पर
त्याग विवाह के सारे बंधन
भील की बेटी, भाग चली वन

हर पल देखी राह राम की
शबरी माँ सी, ना कोई भक्त राम की
चख चख दिये मीठे बेर प्रभु को
56 भोग से लगे बेर प्रभु को

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
मूक जीव का त्रास बनूँ ना
सत्कार को ठोकर कभी मारूं ना

सन्यासी बन पूछे हनुमान
वेश साधु का, तेज विष्णु का
हाथ नचाते तीर कमान
चले कहां दो पुरुष सुजान

जब जाना, ये है प्रभु श्री राम
करे दण्डवत अंजनी सुत हनुमान
राम कहे, लखन, ले लो तुम संज्ञान
मधु वाणी का सानी,नहीं तीर कमान

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
हर अनजान को शत्रु मानूं ना
संयम वाणी का, कभी छोडूं ना

पवनपुत्र संग, उड़ चले भगवान
सुग्रीव ने समझा सारा विधान
कुछ आभूषण है मेरे पास
शायद मन को, दे दे विश्वास

देख के गहने, लगे लखन यूं कहने
हार और झूमके, भैया पहचाने
शीश झुका, सदा चरण छुए है
ये पायल, भाभी को प्रिये है

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
पिता तुल्य जो भाई को मानूं
माँ की मूरत भाभी को जानूँ

जामवंत ने बात बढ़ाई
संधि की एक युक्ति सुझाई
राम सहाय दे बाली वध में
वानर चलें फिर सिया खोज में

प्रभु ने मन की बात बताई
संधि है नातों की तुरपाई
समझौतों से, चल ना सकूंगा
मित्र संग बस मित्र  रहूँगा

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
लेन देन की राजनीति से
मित्र सदा ही दूर रखूं में

सुग्रीव के मन को धैर्य दिया
बाली वध का वचन दिया
हुई लड़ाई जब बांधव में
दुष्ट को बाण से भेद दिया

मृत्यु शैय्या पर बाली पड़ा था
क्यों, राम अधर्मी? पूछ रहा था
करे अनुज वधु का, शील भंग जो
धर्म वही जो मृत्यु दे उसको

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
धर्म, नारी में एक हो चुनना
नारी शील ही धर्म बना लूं

लंका पर हमले से पहले
सिया कहां हैं? सत्य जानले
जाये कौन, कर पार समन्दर
इस पार तो बैठे सारे बंदर

कहे जामवंत। उठो हनुमान
स्वयं अपनी, कर लो पहचान
पुत्र पवन के, तुम हनुमान
सूर्य निगल लो, तुम ऐसे बलवान

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
जान सत्य ही वार करूँ में
स्वयं की शक्ति सदा जानूँ में

लांघ जलधि लंका में डोले
कहां सिया गुम, बलबीर खोज ले
दूत राम का, सिया जान ले
निशान प्रभु की, पास में रख ले

माँ सिया चलो तुम मेरे संग
दैत्य रह जाए सारे दंग
दैत्य कुल का नाम मिटाने
मेरे राम आयेंगे मुझको लिवाने

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
कठिन समय में, चुनूं राह सरल ना
धैर्य की भाषा कभी छोडूं ना

रावन के दरबारी सारे
खी खी हँसते, मति के मारे
व्यंग से बोला , दंभ में रावन
एक वानर को भेजे रघुनन्दन

देख घूर के, लंका का सिंहासन
हनुमान कहे, सुन ले तू रावन
राम हमारे, दया के सागर
पाप मिटा ले, शरण में आकर

पुंछ में इसकी आग लगा दो
ऐस कह रावन गुर्राया
जान सका ना पवन पुत्र को
दंभ ने उसके, लंका जलवाया

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
कभी रावन सा दंभ ना य़े
गुरूर तोड़ दूँ, जो कोई हाथ लगाये

संदेश सिया का मिला प्रभु को
शंख युद्ध का थर्राये धरा को
पार करे सागर ये कैसे
पड़े सोच में सब जन फिर से

समुद्र सुखाने चले श्री राम
हाथ जोड़ कहे, समुद्र भगवान
नल और नील से दो कारीगर
तैरा दे जो जल पर पत्थर

राम राम लिख डाले पत्थर
तैर गए सब जल के ऊपर
बन गया सेतु राम नाम का
समीप आया समय युद्ध का

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
कमियां सारी वरदान बना लूं
राह स्वयं की सरल बना लूं

दूत भेजे सब करे विचार
कहे जामवंत। भेजो कोई दूजा इस बार
लंका को चलो हम दिखलायें
सूरमाओं की पहचान कराये

अंगद सा ना कोई और कदापि
बुद्धी, बल में जो हो त्रिलोक प्रतापी
शांति संदेश लिया प्रभु का
दरबार में पहुंचा, दूत प्रभु का

मिला नहीं जो दूत को आसन
पुंछ से बना लिया सिंहासन
मित्र तुम्हारे, पिता हमारे
बात करूं में भले की तुम्हारे

पौत्र पुलस्त्य के, भक्त महेश के
क्यों करते तुम कृत्य क्लेश के
मैं बलशाली, त्रिलोक का राजा, तुझसे है कहता
कह दे राम को वापस घर जा
चल तुझको भी कुछ याद दिलाये
पर्वत पर्वत पिता हमारे, कांख दबाये, तुझे घुमाये
कपटी नीच जो मेरा पैर हिला दे
हार मान प्रभु शीश झुका दे

हार गए जब सारे दरबारी
रावन की फिर आयी बारी
पकड़ प्रभु के पांव तू पापी
शायद दे दे तुझको वो माफ़ी

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
बल, बुद्धि का मेल बना लूं
नायक बन हित देश में बोलूँ

एक एक कर रावन के योद्धा
हो गए सारे राम को प्यारे
मेघनाद, कुंभकर्ण भी आये
गिर चरणों में हुए जग से पराये

अंत में रावन युद्ध में आया
प्रभु के संग वो टकराया
हाथ कटे या सर कटे जाये
बार बार ही वो जुड़ जो जाये

हर जन सोचे, राम हमारे
क्यों ना तीर हृदय पे मारे
कैसे मारे तीर हृदय पे, सृष्टि बसे है राम के मन में
रावन मन सीता,और सीता मन है राम विराजे

घर का भेदी काम में आया
रावन मृत्यु का राज बताया
सूखा अमृत नाभि का सारा
मृत्यु लोक में उसे पहुंचाया

हर साँस पे मुख से राम निकलता
मृत्यु के समीप था रावन जाता
राम कहे। लखन, कुछ सीख मिलेगी
महापंडित, रावन है वेदों का ज्ञाता

रावन कहे। तीन बात तुम ध्यान में रख लो

टाल सकों तो टाल दो सारे
अशुभ काम, अपने तुम प्यारे
मद में अपने, ना समझो तुच्छ शत्रु को
गूढ़ स्वयं के, कभी स्वजन भी ना जाने

हे राम। मुझे बस इतना वर दो
इतनी शक्ति मुझ में भर दो
काम, क्रोध, मोह, लाभ से हटकर
लाऊं सद्गुण चरित जीवन के अंदर

जय श्री राम


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