शाम की निगाह में, ये दिन गुज़र गया
जाती हुई रात को, इक ख्वाब मिल गया
ढलती हुई उम्र को, फिर प्यार हो गया
संत बनते बनते मैं तो श्याम हो गया
जाती हुई रात को, इक ख्वाब मिल गया
पढ़नी थी गीता पर हमें गुलज़ार मिल गया
आईने को फिर मेरा साथ मिल गया
बीतेगी जिंदगी, बस राम नाम में
सोचा था ऐसा फिर तेरा दीदार हो गया
जाती हुई रात को, इक ख्वाब मिल गया
सेहत के लिये वॉक करना कसूर था
सर्द मॉर्निंग मैं उठना फिजूल था
जब से पाया तुम जाती हो वॉक पे
Walk-e-morning धरम ही बन गया
जाती हुई रात को, इक ख्वाब मिल गया
बालों पे कलर काला इतरा के छा गया
इत्र की महक में कुर्ता नहा गया
कोने में दबी जीन्स इठला के चढ़ गई
चेहरे की सारी फिक्र धुएं में उड़ गई
जाती हुई रात को, इक ख्वाब मिल गया
रहते थे हम ख़फ़ा गानों के शोर से
लगता था डर हमें इन्स्टा की रील से
फिर आँखों में तेरी हम नज्म पा गये
और मौसीक़ी को आशिकी का साथ मिल गया
जाती हुई रात को, इक ख्वाब मिल गया
चाँद, फूल, कलियाँ फिर याद आ गये
ढलती हुई साँझ में फिर जाम छा गये
साकी ने पूछा राज चेहरे के नूर का
एक ग़ज़ल में हम किस्सा बता गये
जाती हुई रात को, इक ख्वाब मिल गया
बारिशों के दिन तन्हा गुज़र गये
आवारगी का फ़न, बस भंवरे पा गये
नजरे करम आपका क्या जादू कर गया
बारिशों का मुन्तजिर ये साधु हो गया
जाती हुई रात को, इक ख्वाब मिल गया
सोचा था जायेंगे काशी के घाट पे
लीन रहेंगे भोले भक्ति में
कुरबत ने फिर तेरी तांडव मचा दिया
काशी के रास्ते गोवा दिखा दिया
जाती हुई रात को, इक ख्वाब मिल गया
फिरते थे कभी साथ हम छड़ी लिये हुए
अब अपनी छड़ी को विश्राम मिल गया
नींद नहीं आती हमें इस उम्र में
उन शिकायतों को विराम लग गया
जाती हुई रात को, इक ख्वाब मिल गया
जीवन का ये सफ़र कटना ज़रूरी है
साथ जो हँसे मिलना ज़रूरी है
जिंदगी की राह में फिर साथ मिल गया
मस्ती में एक ख्वाब की फ़िर दिन ढल गया
ढलती हुई उम्र को, फिर प्यार हो गया
शाम की निगाह में, ये दिन गुज़र गया