ए मेरे वतन, सुन आज ज़रा, तुझसे ये कहने आया हूँ
है गर्व मुझे इस वर्दी पर इतना बतलाने आया हूँ
रेष रेष में बंधा हुआ, इस वर्दी संग में रहता हूं
तीन रंग में सजा हुआ, पर लाल का दर्द मेँ सहता हूं
रेत की गरमी, बर्फ की ठंडक, हंस हंस के वो सहते है
डोर ना टूटे साँस की जब तक, मेरे लिये वो जगते है
मैं लाल किले पर सजता हूँ, जण गण के मन में बसता हूँ
पर खून के आंसू रोता हूँ, जब वर्दी पर मैं बिछता हूँ
ए झोंके हवा के ठहर ज़रा, कुछ तुझको देने आया हूँ
महका दे सारे गुलशन को, उस वर्दी का पसीना लाया हूँ
सुना है मैंने, दिवाली पर, रघुबर जग से मिलते है
पर मेरे ख़ातिर, सरहद पर, रघुवंशी दीपक बन जलते है
जब जब वर्दी वालों के, हाथों पर राखी सजती है
कर्ज है मुझ पर बहनों का हर राखी मुझसे कहती है
वर्दी में सिमटी चिट्ठी को, पढ़ पढ़ के आहें भरता हूँ
रोली, मेहंदी के तर्पण को, बस आंख झुका कर सहता हूँ
मुझ में लिपटी वर्दी से, माँ लिपट लिपट जब रोती है
उसके सूने आंचल में, ख़ुद को महफ़ूज़ सा पाता हूँ
ए मेरे वतन, सुन आज ज़रा, कुछ तेरे लिये भी लाया हूँ
चल शीश झुका कर सजदा करे, मिट्टी बलिदानी लाया हूँ
है गर्व मुझे इस वर्दी पर इतना बतलाने आया हूँ