कृष्ण , क्या तुम भी रोये हो
या अब तक क्रोध में सोये हो ।।
कैसे तुम, इतने निष्ठुर हो गये
अपनी वायु ,अपने साथ ले गये ।
फल की चिंता, ना करने वाले तुम
कैसे ,कर्म का लेखा-जोखा पा गये ।।
बांधने का तुमको, सोच भी सके
वो दुर्योधन, अब कहाँ इस जग में ।
ना भरो हुंकार, बस भी करो विस्तार
कोने कोने से आ रही, दर्द की चित्कार।।
कृष्ण , क्या तुम भी रोये हो
या अब तक क्रोध में सोये हो ।।
चंद्र से क्या, फिर कोई वादा कर आये हो
कितने अभिमन्यु ले जाने की कह आये हो ।
हो गयी हो जो गिनती पूरी, तो इतना बता दो
चक्रव्यूह जो तोड़े, वो अर्जुन कहाँ छोड़ आए हो ।।
उत्तरा का एकाकी मन तो देखा है तुमने
उसका अग्नि समर्पण भी रोका है तुमने ।
फिर कई उत्तरायें, अग्निपथ पर आ खड़ी है
सम्भाल लो इन्हें, कैसी विपदा आ पड़ी है ।।
कृष्ण , क्या तुम भी रोये हो
या अब तक क्रोध में सोये हो ।।
किसको मैया बुलाए, कैसे माखन खाये
कितने अबोध बचपन, जग में हुए पराये ।
क्यों कृष्ण के होते, कान्हा हुए असहाय
कुछ तो करो, दो कान्हा को, यशोदा से मिलाय ।।
ये कैसा श्राप है, प्रिय को कंधा देना भी पाप है
प्रिय को अग्नि ना दे पाये, ये कैसा अभिशाप है ।
दाह एक संस्कार है, मृतक का अधिकार है
ना छीनों ये अधिकार, बस इतनी सी गुहार है ।।
कृष्ण , क्या तुम भी रोये हो
या अब तक क्रोध में सोये हो ।।
ना राधा सी प्रीत , ना मीरा सी भक्ति
मुझ खल कामी में, कहा इतनी शक्ति ।
चुभते असंख्य शूलों से, अब थक चुका हूं
बस भी करो , जीते जी मर चुका हूं ।।
पाप अनन्य है, अपराध जघन्य है
धन बेला पर लिपटे, सर्प अक्षम्य है ।
क्षमा याचिका हाथ लिये, कर बद्ध खड़ा तेरे द्वार
तुच्छ मनुज पर कृपा दिखाओ, बंद करो संहार ।।