इतिहास की कहानी-युद्ध की जुबानी

मैं युद्ध हूं

प्रारंभ  सुर के श्राप का, आरंभ में विनाश का
प्रमाण शब्द बाण का, प्रतीक मैं संहार का ।।

मैं वचनों का परिणाम हूँ , मैं राम का वनवास हूँ
शक्ति  का अहं हूँ  मैं, मैं लंका का विनाश हूँ ।।

द्रौपदी के चीर का, घूंट मैं अपमान का
कर्ण के उपहास का, मैं साक्षी द्वेष भाव का ।।

साक्षी गीता ज्ञान का, अभिमन्यु के कौमार्य का
चक्रव्यूह निर्माण का, मैं साक्षी नीच कार्य का ।।

विप्र के प्रतिशोध का, और नंद के विनाश का
प्रमाण चणक शास्त्र का, मैं साक्षी धीर मौर्य का ।।

खिलजी की मक्कारी का, और गौरा की बलिदानी का
पद्मिनी की आन का, मैं प्राण मेवाड़ी शान का ।।

अकबर की लाचारी का, और राणा की खुद्दारी का
चेतक की वफ़ादारी का, मैं पानी हल्दी घाटी का  ।।

शिवबा के अधिकार का, और मुगलों के संहार का
भगवा के प्रतिकार का, मैं रक्त मराठी धार का ।।

रानी की मर्दानी का, और वीरों की कुर्बानी का
ख़ूनी डायर होली का, मैं प्रण बहनों की रोली का ।।

मैं खंड बसंती चोले का, और नेताजी के टोले का
मैं तांडव भगत से भोले का, और जोश मैं तुंग हिमाले का ।।

47 के खंजर का, मैं साक्षी खूनी मंजर का
खंडित माँ के अश्रु का, मैं लज्जित धोखा अपनों का ।।

65 वाली तोपों का, उन मानेकशॉ की फौजों का
मैं शब्द अटल की बोली का, उस करगिल वाली गोली का ।।

उरी के उन वीरों का, मैं बदला सोते शेरों का
माथे की मिटती बिंदिया का, मैं पापी मेहंदी बिछीया का ।।

गंगा की बहती लहरों का, मैं साक्षी अमिट उजालों का
भारत के बढ़ते कदमों का, मैं स्वर मानस के गीतों का ।।


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